आज सुबह से ही फ़ोन पर शिक्षक दिवस की शुभकामनाओं के बहुत सुन्दर वीडियो एवेम उधारणों के चित्र आने शुरू हो गए
बहुत ही सुन्दर एवेम प्रेरक शब्दावली से सचमुच शिक्षक को ईश्वर से महान बताने की होड़ में एक दुसरे से आगे निकल रहे थे
पर एक रिटायर्ड शिक्षक होने के नाते मैंने पिछले 24 वर्षों के शिक्षण काल में यह अनुभव किया की यह दिवस भी बच्चों और शिक्षकों के लिए भी रोज़ मर्रा की दिनचर्या से अलग हटकर थोड़ा मौज मस्ती एवं पठन पाठन से छुट्टी का ही दिन है
ऐसा क्यों हो रहा है या हुआ है इसका कारण लोगों की बदली हुई मानसिकता है
नर्सरी और पहली कक्षा के बच्चे ज़्यादा ही भोले और नादान होते हैं इसलिए वे शिक्षक जैसे ही बनने की कोशिश करते हैं परन्तु धीरे धीरे बच्चों को शिक्षक भी एक दूकानदार जैसा ही लगने लगता है जो उनकी फीस के बदले अपनी शिक्षा को बेचता है
किशोर छात्र छात्राओं के लिए शिक्षक बनना मजबूरी की पसंद होती है
क्यूंकि वे और उनके माँ बाप बच्चों को उन प्रोफेशनस में भेजना चाहते हैं जिसमे शान और शौकत, रुतबा और पैसों की खनक होती है
सादगी एवेम जीवन मूल्यों से भरपूर ज़िन्दगी न तो आज के शिक्षक को पसंद आती है और न ही उनके छात्रों को
कक्षा में कई बार जब हम शिक्षक छात्रों से उनके भविष्य के सपने के बारे में पूछते हैं तो डॉक्टर,इंजीनियर, आईएएस, आदि अफसर बनने की इच्छाएं सामने आती हैं
कोई भी बच्चा भविष्य में शिक्षक बनने की इच्छा नहीं रखता
बच्चों के माता पिता भी शिक्षकों को सम्मान स्वयं नहीं देते हैं इसलिए बच्चों को वे इसके संस्कार कैसे दे सकते हैं
वाट्सएप्प पर केवल अच्छी अच्छी कवितायेँ बच्चों में अच्छे संस्कार नहीं दे सकती
अगर अच्छी चैट्स से ही सब ज्ञान मिल जाता तो न तो विद्यालों की आवश्यकता होगी और न ही शिक्षकों की
आवश्यकता है युवा शिक्षकों को स्वयं अपने मूल्यों को महत्व देकर नयी पीढ़ी को पोषित करने की
आज के शिक्षक स्वयं मजबूरी में शिक्षक बने हैं ,अपनी ज़िम्मेदारी समझ कर नव निर्माण के लिए नहीं
अंत में यही कहूँगी की “नजरिया बदलो नज़ारा स्वयं बदल जायेगा”