जिस दिन तेरा जनम हुआ
जीवन की खुशियां बौरायीं
तन मन का आँगन पूर्ण हुआ
बगिया फूलों से मुस्काई
रुई से कोमल फाये को जब
हाथों से मैंने थामा
मेरे आँचल को पकड़ जकड
तू मंद मधुर मुस्काई
में सोच रही थी क्या उषाकाल की
दिव्य किरण ही स्वयं धरा पर आयी?
बनी मेरी जीवन ज्योति
में स्वयं भाग्य पर इतराई
तू सखी बनी, तू बंधू बनी
तू किलकारी है जीवन की
तू चहक महक है आँगन की
तू अरुणयी ही मधुवन की
तू कान्हा की मुरली की धुन
तू मीरा की तान है
मन मयूर का नर्तन है या
अधरों की मुस्कान है
तू स्तुति लक्ष्मी की है
या गौरी का वरदान है
जो भी है अभिव्यक्ति हृदय की
ईश्वर की पहचान है
जगमग करती दोनों कुल को
तू मेरा अभिमान है
महकाया करती जीवन को
अंजुरी भरा गुमान है
घर स्वर्ग सामान हुआ करता
जिस घर बेटी होती है
भावों के बंधन पिरो पिरो
बंधन में बाँधा करती है
तू स्वस्थ रहे तू सुखी रहे
कीर्ति भरा वित्तान हो
देती है आशीष तुझे
मेरे भावों की निर्बहनी